पुंसवन संस्कार पूजा पटना में
पुंसवन संस्कार हिन्दू धर्म में पुंसवन संस्कार का बहुत महत्व रहा है. ये संस्कार ही मनुष्य के जीवन जीने की दशा को गति देते हैं. विश्व के निर्माण एवं मनुष्य कल्याण में इन संस्कारों की अहम भूमिका रही है. पंच भूतों से निर्मित हमारा शरीर इन संस्कारों से जुड़ते-जुड़ते एक सफल एवं सकारात्मक जीवन जीने की प्रेरणा पाता है. ये सभी संस्कार संतान के गर्भ में विकसित होने की प्रक्रिया में उसके मानसिक और बौद्धिक विकास की उन्नति में ये संस्कार गहरी नींव डालते जाते हैं. गर्भ धारण करने के बाद गर्भ की रक्षा के लिये विष्णु की पूजा की जाती है. यह पूजा श्रवण, रोहणी, पुष्य़ नक्षत्र में से किसी एक में की जा सकती है. नक्षत्र के अतिरिक्त शुभ दिन अर्थात गुरुवार, सोमवार, शुक्रवार आदि का प्रयोग करना शुभ रहता है. मुख्य रुप से यह पूजा गर्भाधान के दिन से लेकर आठवें मास के मध्य की अवधि में करना शुभ रहता है. इसके लिये स्थिर व शुभ लग्न का चुनाव किया जाता है. संस्कार के समय लग्न से आठवें घर पर कोई पाप प्रभाव न होना इस पूजा के शुभ प्रभाव को बढ़ाता है.
उद्देश्य यह संस्कार गर्भस्थ शिशु के समुचित विकास के लिए गर्भिणी का किया जाता है। कहना न होगा कि बालक को संस्कारवान् बनाने के लिए सर्वप्रथम जन्मदाता माता-पिता को सुसंस्कारी होना चाहिए। उन्हें बालकों के प्रजनन तक ही दक्ष नहीं रहना चाहिए, वरन् सन्तान को सुयोग्य बनाने योग्य ज्ञान तथा अनुभव भी एकत्रित कर लेना चाहिए। जिस प्रकार रथ चलाने से पूर्व उसके कल-पुर्जों की आवश्यक जानकारी प्राप्त कर ली जाती है, उसी प्रकार गृहस्थ जीवन आरम्भ करने से पूर्व इस सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी इकट्ठी कर लेनी चाहिए। यह अच्छा होता, अन्य विषयों की तरह आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में दाम्पत्य जीवन एवं शिशु निर्माण के सम्बन्ध में शास्त्रीय प्रशिक्षण दिये जाने की व्यवस्था रही होती। इस महत्त्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति संस्कारों के शिक्षणात्मक पक्ष से भली प्रकार पूरी हो जाती है। यों तो षोडश संस्कारों में सर्वप्रथम गर्भाधान संस्कार का विधान है, जिसका अर्थ यह है कि दम्पती अपनी प्रजनन प्रवृत्ति से समाज को सूचित करते हैं। विचारशील लोग यदि उन्हें इसके लिए अनुपयुक्त समझें, तो मना भी कर सकते हैं। प्रजनन वैयक्तिक मनोरंजन नहीं, वरन् सामाजिक उत्तरदायित्व है। इसलिए समाज के विचारशील लोगों को निमंत्रित कर उनकी सहमति लेनी पड़ती है। यही गर्भाधान संस्कार है। पूर्वकाल में यही सब होता था।
पुंसवन संस्कार क्यों किया जाता है शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास शुभ प्रभावों में हों इसके लिए ये संस्कार मदद करते हैं. पुंसवन संस्कार गर्भाधान के दूसरे या तीसरे महीने में किया जाने का विधान बताया गया है. इस संस्कार से गर्भ में आए हुए बच्चे का अभी लिंग तय नहीं हो पाता है. बच्चे के अंग विकास एवं मानसिक विकास का आरंभ तीसरे माह के बाद से आरंभ हो जाता है, इस लिए इस समय के दौरान ही इस संस्कार को कर दिया जाता है.
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